क्या हैं मां कूष्मांडा की पूजा के नियम, जानें सुबह-शाम का शुभ मुहूर्त।
माँ कूष्मांडा का परिचय
माँ कूष्मांडा नवदुर्गा का एक प्रमुख स्वरूप हैं, जिन्हें ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली देवी माना जाता है। “कूष्मांडा” का अर्थ है “अंडे के भीतर रहने वाली”। मान्यता है कि माँ ने अपनी मुस्कान से संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना की। उन्हें सिंह पर सवार और आठ भुजाओं वाली देवी के रूप में दर्शाया जाता है। उनके दाहिने हाथों में धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश और वरमुद्रा होती है, जबकि बाएँ हाथों में चक्र, गदा और अभय मुद्रा होती है। माँ का रंग लाल है, और पूजा के दौरान लाल रंग का उपयोग विशेष लाभदायक माना जाता है। माँ कूष्मांडा सभी रोगों को समाप्त करने और स्वास्थ्य तथा समृद्धि का आशीर्वाद देने वाली देवी हैं।
पूजा का समय
नवरात्रि में पूजा का विशेष महत्व है, और शुभ मुहूर्त पर पूजा करना फलदायक होता है। आज नवरात्रि का चौथा दिन है। पूजा का शुभ समय और राहु काल जान लेना आवश्यक है।
सुबह की पूजा का समय:
- अभिजित मुहूर्त: 11:45 ए.एम. से 12:32 पी.एम.
- अमृत काल: 02:25 पी.एम. से 04:12 पी.एम.
शाम की पूजा का समय:
- आज सूर्यास्त का समय 06:01 मिनट है। आप इस समय के बाद पूजा कर सकते हैं।
पूजा के नियम
माँ कूष्मांडा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। इस दिन कुमकुम, फूल, फल, मिठाई आदि चढ़ाए जाते हैं। उनका मंत्र है: “ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः”। माँ हमें सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
पूजा की प्रक्रिया:
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजाघर को साफ करें।
- एक साफ चौकी पर माँ की मूर्ति स्थापित करें।
- माँ को फूल, फल, मिठाई, धूप और दीप अर्पित करें।
- मंत्र का जाप करें: “ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः”।
- अष्टगंध अर्पित करें और माथे पर सिंदूर का तिलक लगाएं।
- भोग में आम, अनानास, सेब आदि फल अर्पित करें।
- पूजा के अंत में माँ कूष्मांडा की आरती करें।
पूजा के दौरान मन एकाग्र रखें और श्रद्धा से करें। किसी भी प्रकार का शोर या विवाद न करें, और पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें।