हापुड़ के दहपा गांव में प्राचीन शिव मंदिर, आस्था और चमत्कार की अद्भुत गाथा
हापुड़, 28 फरवरी: हापुड़ के दहपा गांव में स्थित 400 वर्ष से अधिक प्राचीन शिव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर अपनी अनोखी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां आने वाला कोई भी भक्त निराश नहीं लौटता। मंदिर में प्राकृतिक रूप से प्रकट हुआ शिवलिंग स्थापित है, जिस पर हल का निशान दिखाई देता है। मान्यता है कि इस शिवलिंग की ऊंचाई हर साल एक सेंटीमीटर बढ़ती है। हालांकि, इस दावे की कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है।
मंदिर का इतिहास और मान्यता
यह मंदिर धौलाना तहसील के पिलखुवा से लगभग ढाई किमी दूर स्थित है। स्थानीय पुजारी मनोज शर्मा, जो पिछले दो वर्षों से मंदिर की देखरेख कर रहे हैं, बताते हैं कि शिवलिंग स्वयंभू (प्राकृतिक रूप से प्रकट हुआ) है। इस मंदिर का महत्व तब बढ़ा जब भिवानी सिंह नामक किसान हल चलाते समय एक कठोर पत्थर से टकरा गए, जिससे उनके बैल अचानक बेहोश हो गए। अगले दिन जब वे वापस आए, तो उन्होंने उसी स्थान पर शिवलिंग प्रकट होते देखा, जिस पर हल का निशान स्पष्ट था।
इतिहास में मंदिर पर हुए हमले
मुगल शासनकाल में इस शिव मंदिर पर कई बार हमले हुए, लेकिन स्थानीय श्रद्धालुओं ने इसे बचाने के लिए संघर्ष किया। ब्रिटिश शासन के दौरान मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य शुरू हुआ, और तब से यहां पूजा-अर्चना अनवरत रूप से चल रही है।
भगवान श्रीकृष्ण की बारात भी यहां रुकी थी
इतिहासकारों के अनुसार, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी और दिल्ली यूनिवर्सिटी में उपलब्ध ‘दिल्ली की खोज’ पुस्तक में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण जब देवी कालिंदी से विवाह के लिए बारात लेकर निकले थे, तो उनकी बारात इस मंदिर में ठहरी थी। विशाल बारात के लिए इंतजाम हापुड़ तक फैला हुआ था। इस ऐतिहासिक घटना का प्रमाण आज भी स्थानीय मान्यताओं में जीवित है।
सावन और महाशिवरात्रि में विशेष आयोजन
श्रावण माह में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करने आते हैं। महाशिवरात्रि के दौरान मंदिर में कांवड़ यात्रा का विशेष आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों भक्त भाग लेते हैं। शिवरात्रि से चार दिन पहले ही भक्तों का मेला शुरू हो जाता है और पूरा मंदिर परिसर भक्तिमय वातावरण में डूब जाता है।