बिलासपुर: चारों तीर्थ स्थानों की यात्रा करने के बाद मार्केडेय तीर्थ स्थल पर स्नान करना जरूरी माना गया, उसके बिना यात्रा सफल नहीं ।

बिलासपुर घुमारवीं: 09 जून 2022 बिलासपुर जिला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर है मार्कंडेय तीर्थ । कहा जाता है कि चारों धाम की यात्रा करने के बाद मार्कंडेय तीर्थ पर स्नान करना जरूरी है ।उसके बिना यात्रा सफल नहीं होती है ।शेष तीर्थों की यात्रा चाहे बार-बार करो लेकिन मार्कंडेय तीर्थ की यात्रा एक बार जरूर करनी चाहिए ।

लोक मान्यता है कि जिन पति पत्नी के संतान नहीं होती वो मार्कंडेय तीर्थ पर जाकर स्नान करें तो संतान प्राप्त हो जाती है । कई लोग मार्कंडेय तीर्थ पर जाकर मान्यता करते हैं और जब उनकी मनौती पूर्ण हो जाती है तो मार्कंडेय तीर्थ पर बच्चे को एक साल के भीतर स्नान कराते हैं । तथा मार्कंडेय ऋषि की मूर्ति पर वस्त्र अर्पित करते हैं ।

यह बहुत पुरानी मान्यता चली आ रही है । इस मार्कंडेय तीर्थ पर हर साल वैशाखी के उत्सव पर मेला भी लगता है ।पहले यह मेला रात का मेला होता था ।वह इसलिए क्योंकि पुराने समय में आने-जाने की सुविधा कम थी । लोग दूर-दूर से यहां स्नान करने आते थे । इसलिए रात को ही वह चल पड़ते थे और मेला रात को भी लगा रहता था ।

अब वक्त बदला ,लोग बदले तो सब आधुनिकता की भेंट चढ़ गया है । मार्कंडेय मंदिर परिसर का खूब विकास हुआ है । यहां पर नए मंदिर बने हैं । संगमरमर टाइलें सारे परिसर में लगाई गई हैं । महिलाओं और पुरुषों का स्नानागार बंद कमरों में व्यवस्थित ढंग से कर दिया गया है । मार्कंडेय तीर्थ में एक ऐसा जल स्त्रोत है जो चर्म रोग दूर करने की बावड़ी के नाम से जाना जाता है ।

कहा जाता है कि यहां पर स्नान किया जाए तो व्यक्ति के चर्म रोग भी दूर हो जाते हैं ।यहीं पर पहाड़ के साथ एक गुफा है, जिसे व्यास गुफा ,मारकंडे गुफा ..भी कहा जाता है । बिलासपुर बस अड्डा के पास सतलुज नदी के किनारे महर्षि व्यास की गुफा है । मान्यता है कि प्राचीन समय में महर्षि व्यास और मारकंडे जी इसी गुफा के मार्ग द्वारा आपस में धर्म चर्चा करते थे । आपस में मिला करते थे । गुफा का एक सिरा बिलासपुर शहर के साथ व्यास गुफा में खुलता है तो दूसरा बंदला धार के परली तरफ मारकंडे तीर्थ पर खुलता है ।

मार्कंडेय तीर्थ के साथ ही कोई डेढ़ किलोमीटर दूर आगे वटी कृष्ण नाम का तीर्थ भी है ।मार्कंडेय तीर्थ पर ही महाली के बाबा का आश्रम भी है जिसे दत्तात्रेय आश्रम कहा जाता है कहां जाता है कि यहां पर मारकंड में किसी समय मार्कंडेय ऋषि के माता-पिता रहते थे । तपस्या करते थे ।उनके कोई संतान नहीं थी । उन्होंने भगवान की पूजा अर्चना की । उनसे संतान सुख मांगा तो उन्हें कहा गया कि आपके संतान तो होगी लेकिन अल्पायु होगी । खैर ,ऋषि दंपति के मार्कंडेय नाम का पुत्र पैदा हुआ जो अल्पायु था ।

मारकंडेय को सलाह दी गई कि वह प्रतिदिन भगवान शंकर की पूजा किया करें । वही महाकाल हैं । वही काल से उनकी रक्षा कर सकता है । बालक मारकंडेय भगवान शंकर के शिवलिंग रूपी पत्थर की पूजा करने लगे । एक दिन धर्मराज स्वयं बालक मार्कंडेय को लेने आये ।जैसे ही वह मार्कंडेय को अपने साथ ले जाने के लिए आगे बढ़े तो मार्कंडेय ने शिवलिंग के साथ लिप्ट कर अपनी रक्षा की गुहार लगाई ।

ऊधर भोले शंकर ने त्रिशूल लेकर धर्मराज पर वार कर दिया ।धर्मराज पीछे हट गए इस तरह मार्कंडेय ऋषि भगवान शंकर के प्रताप से अजर अमर हो गए हैं । मार्कंडेय पुराण में सारा वर्णन विस्तार से किया गया है कुल मिलाकर मार्कंडेय तीर्थ एक सुंदर रमणीक स्थान है।यहां ना जाने कितने बड़े बड़े साधु संतों ने वर्षो तपस्या करके इस स्थान को पवित्र बनाया है ।