बिलासपुर: महर्षि मार्कंडेय की तपोभूमि मार्कंडे में स्नान नहीं किया तो अधूरी रहती है चार धाम यात्रा।

बिलासपुर घुमारवीं:03 अप्रैल 2022 हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में महर्षि मार्कंडेय की तपोस्थली मार्कंड में स्नान किए बिना चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। मान्यता के अनुसार चार धाम पर जाने वाले लोग यहां पर स्नान करने के बाद ही अपनी यात्रा पूरी मानते हैं। बैसाखी पर्व पर पवित्र स्नान के लिए हजारों की भीड़ यहां उमड़ी। ब्रह्म मुहूर्त में शुरू हुआ स्नान का सिलसिला दिनभर चलता रहा। भगवान शिव व मार्कंडेय से जुड़े होने के कारण यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र बना है।

यह है पौराणिक कथा- पौराणिक गाथा के अनुसार मृकंडु ऋषि की घोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने पुत्र रतन का वरदान दिया। लेकिन, वरदान के साथ उन्होंने पुत्र के अल्पायु होने का भी जिक्र कर दिया। ज्यों-ज्यों पुत्र की आयु बढ़ती गई, पिता चिंताग्रस्त रहने लगे। बालक मार्कंडेय कुशाग्र बुद्धि होने के साथ पितृभक्त भी थे। उन्होंने अपने पिता के मन को कुरेद कर चिंता का कारण जान लिया तथा इस चिंता से मुक्ति के लिए भगवान शिव की तपस्या आरंभ की। जब उनकी आयु 12 वर्ष होने के केवल तीन दिन शेष रह गए, तो उन्होंने रेत का शिवलिंग बनाया और शिव की तपस्या में लीन हो गए। यमदूत उनके प्राण हरण करने के लिए आए, लेकिन जब वह बाल तपस्वी की ओर बढ़ने लगे तो रेत के उस शिवलिंग में से आग की लपटें निकलीं व यमदूतों की ओर बढ़ने लगीं।

महर्षि मार्कंडेय की तपोस्थली –
हारकर यमदूत यमपुरी चले गए तथा यमराज को सारा हाल सुनाया। स्वयं यमराज जब वहां आए तो मार्कंडेय जी ने शिवलिंग को बांहों में पकड़ लिया।

शिवलिंग में से शिव प्रकट हुए तथा उन्होंने यमराज को वापस यमपुरी जाने का आदेश दिया। ऐसा मानना है कि यह घटना बैसाखी की पूर्व संध्या को घटित हुई। उस स्थान पर पानी का झरना फूट पड़ा, जिसे आज मार्कंडेय तीर्थ के नाम से जाना जाता है। बैसाखी को यहां बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आकर ब्रह्म मुहूर्त से दिनभर पवित्र स्नान करते हैं। इस वृतांत का विवरण मार्कंड पुराण में भी पढने को मिलता है।