भारतवर्ष का मुकुट कहे जाने वाले हिमाचल के आंचल में बसे हिमाचल प्रदेश का सांस्कृतिक व सामरिक दृष्टि से विशेष महत्व

भारतवर्ष का मुकुट कहे जाने वाले हिमाचल के आंचल में बसे हिमाचल प्रदेश का सांस्कृतिक व सामरिक दृष्टि
से विशेष महत्व है। देवों की भूमि होने के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश वीरों की भूमि भी रहा है । हमेशा से यहां
के बेटों ने भारत मां की रक्षा में अपना योगदान दिया है । यहां के हर एक गांव में शूरवीरों की शौर्य गाथा के
किस्से कहानी हर बच्चे की जुबान पर होते है और यही कहानियों बच्चों को शौर्य पथ पर चलने की प्रेरणा देती
हैं। यही कारण है कि हिमाचल की जनसंख्या का एक बड़ा भाग भारतीय सशस्त्र सेनाओं और अर्ध सैनिक बलों
में कार्यरत है। वर्तमान में भारत की सशस्त्र सेनाओं में हर 13 सैनिक में से एक सैनिक हिमाचल की भूमि से
आता है । स्वतंत्रता से अभी तक चार परमवीर चक्र भी हिमाचल प्रदेश से ही है।
इन किस्से कहानियों में से एक बड़ी महत्वपूर्ण कहानी है कारगिल युद्ध की। इसी कार्यगिल युद्ध में हिमाचल
प्रदेश के दो वीरों, कैप्टन विक्रम बत्रा और सिपाही संजय कुमार ने परमवीर चक्र का सर्वोच्च सम्मान अर्जित
किया था ।
आज हमारा राष्ट्र कारगिल विजय के 25 साल पूरा होने पर रजत जयंती मना रहा है। हर वर्ष 26 जुलाई को मैं
दराज कारगिल में जाकर शहीदों को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।

आज से 25 वर्ष पूर्व सन 1999 में पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत के भरोसे की हत्या की थी और
कारगिल, दराज और बटालिक के इलाकों में घुसपैठ करके अपना कब्जा कर लिया था। जैसे ही भारतीय सेना
को इसका आभास हुआ तभी से घुसपतियों को मार भगाने की कवायद शुरू हो गई। उस समय किसी ने यह
नहीं सोचा था कि यह कवायद एक भीषण युद्ध की शुरुआत है।

मेरी यूनिट 18 ग्रेनेडियर जिसका मैं कमान अधिकारी था उन दिनों कश्मीर घाटी के मानसबल इलाके में
तैनात थी। वहां पर आए दिन हमारी आतंकवादियों से मुठभेड़ होती थी। तैनात होने के कुछ ही दिनों में हमने
19 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया था। तभी हमें हमारे उच्च अधिकारियों से आदेश मिला कि
पल्टन को तुरंत दराज मूव करना है।
दराज सेक्टर में दुश्मन ने टोलोलिंग, टाइगर हिल और मास्को घाटी में सभी महत्वपूर्ण चोटियों पर अपना
कब्जा जमा लिया था और दुश्मन लेह लद्दाख व शियाचीन ग्लेशियर की लाइफ लाइन कहे जाने वाले राष्ट्रीय
राजमार्ग पर भारतीय सेना के मूवमेंट को बाधित कर रहा था। 18 ग्रेनेडियर को टास्क मिला कि टोलोलिंग की
सभी चोटियों को हर कीमत पर दुश्मन से मुक्त कराया जाए । हमने एक बेहतर रणनीति के साथ टोलोलिंग
पर बैठे दुश्मन पर धावा बोल दिया। उस समय दुश्मन की तादात और उसकी तैयारी के विषय में सटीक सूचना
का अभाव था। साथ ही हाई एल्टीट्यूड की लड़ाई लड़ने के लिए जरूरी साजो समान और दूसरे सैनिक दस्तों,
विशेषकर आर्टिलरी का बेहद अभाव था। यही कारण था कि हर दिन हमारा नुकसान हो रहा था। परंतु 18
ग्रेनेडियर के जांबाजों ने इन सभी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी अपने हौसलों को मजबूत रखा और अपने
प्राणों की परवाह किए बिना दुश्मन पर लगातार हमले करते रहे । 22 मई को शुरू हुआ यह हमला 14 जून
तक चला और इन 24 दिनों में हम सभी कठिन व दुर्गम चढ़ाई, खराब मौसम और दुश्मन की लगातार हो रही
भीषण गोलाबारी का सामना करते रहे। इस लड़ाई में मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने अपने प्राणों की आहुति दी
जिन्हें मनोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। एक हमले के दौरान जिसे मैं स्वयं लीड कर रहा था
मेरे उपकमान अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल आर विश्वनाथन को गोली लगी और उन्होंने मेरी ही गोद में उन्होंने
दम तोड़ दिया। लेफ्टिनेंट कर्नल आर विश्वनाथन को उनके अदम्य साहस के लिए वीर चक्र से सम्मानित
किया गया। अततः 12 जून को हमने 2 राजपूताना राइफल्स के साथ मिलकर टोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा
फहरा दिया और साथ ही 14 जून को हम्प की महत्वपूर्ण चोटी पर विजय हासिल की । टोलोलिंग की लड़ाई में
हमारे दो अधिकारी, दो सूबेदार और 21 जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। 18 ग्रेनेडियर के शौर्य को
देखकर सेना के उच्च अधिकारियों ने एक बार फिर हमें एक और महत्वपूर्ण जिम्मा सौंपा और यह था दराज
सेक्टर की सबसे महत्वपूर्ण छोटी टाइगर हिल पर कब्जा करना। मैं और मेरी टीम एक बार फिर अपनी तैयारी
में जुट गए। हमने टाइगर हिल का हर संभव दिशा से रीकोनोसेन्स किया और सभी टुकड़ियों के कमांडरों के
सुझाव को शामिल करते हुए एक बेहद सटीक रणनीति बनाई ।
3 जुलाई की रात को हमने टाइगर हिल पर चौतरफा हमला बोल दिया और सबसे कठिन रास्ते को चुना। जिस
तरफ से जाना ना मुमकिन था हमारी D कंपनी और घातक प्लाटून ने टॉप पर पहुंचकर दुश्मन को एकदम
भौचक्का कर दिया । पूरी रात एक भीषण घमासान युद्ध हुआ और हम टाइगर हिल टॉप पर अपना फुटहोल्ड
बनाने में सफल हुए। इसके बाद हमने लगातार हमले जारी रखें और 8 जुलाई को हमने पूरे टाइगर हिल पर
विजय पताका फहरा दी। इस लड़ाई में ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव की शौर्य गाथा आज हर बच्चा जानता है

जिसके लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस लड़ाई में हमारी यूनिट के 9 नौजवानों ने अपने
प्राणों का बलिदान दिया। लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को महावीर चक्र से और कप्तान सचिन निंबालकर को वीर
चक्र से नवाजा गया। कारगिल की लड़ाई में 18 ग्रेनेडियर ने—– शौर्य पदक जीतकर अपने आप में एक
कीर्तिमान बनाया।
जैसे ही टाइगर हिल पर हमने विजय पताका फहराई, उधर दूसरी तरफ पाकिस्तान की सेना में खलबली मच
गई ।पाकिस्तान का तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ युद्ध विराम की गुहार लगाने अमेरिका के राष्ट्रपति
बिल क्लिंटन के पास भागे। परंतु हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई ने साफ कह
दिया कि जब तक पाकिस्तान के आखिरी घुसपैठी को हम भारत की सीमा से नहीं के खदेड देते युद्ध विराम
का सवाल ही नहीं उठता ।
कारगिल के इस युद्ध में भारतीय सशस्त्र सेनओ ने 527 रण बाकुरों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी।
जिसमें 52 योद्धा हमारे हिमाचल प्रदेश के थे। मुझे याद है हमारे प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी जब
वे हिमाचल में एक प्रचारक थे, श्री धूमल जी जो कि तत्कालीन मुख्यमंत्री थे हिमाचल प्रदेश के, उनके साथ
लड़ाई के फ्रंट पर गए और अपने सैनिकों से मिले। 5 और 6 जून को उन्होंने अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाया
और 92 बेस हॉस्पिटल में घायल सैनिकों से मिलकर उनके साथ मिठाई बांटी।
कारगिल की लड़ाई से एक बार फिर साबित हो गया था कि भारत एक शांतिप्रिय देश है लेकिन अगर दुश्मन
हमारी तरफ आंख उठायेगा तो भारत की सशस्त्र सेनाएं उस दुश्मन को सबक सिखाने के लिए हमेशा मुस्तैद
है।
आज के इस मौके पर मैं अपने नौजवानों से बस यही कहना चाहूंगा कि वह इस स्वतंत्रता के मोल को समझे
और भारत देश की समृद्धि और खुशहाली के लिए अपने आप को सशक्त बनाएं, कुशल बनाएं और स्वावलंबी
होकर भारत के विकास में अपना योगदान दें।