लंबुल में आज होने वाले युवा सम्मेलन से पहले किया ऐलान
कहा-सिस्टम नेताओं की सिफारिश पर नहीं जनता की जरूरत के मुताबिक चलना जरूरी
हमीरपुर 16 अप्रैल- हमीरपुर के समीपवर्ती कस्बे लंबलु में आज युवाओं का एक बड़ा सम्मेलन होगा। जिसमें हजारों युवाओं के जुटने की पुख्ता जानकारी है। जानकारी की पुष्टि स्वयं करते हुए आशीष शर्मा ने बताया कि सामाजिक सजगता व लोकतंत्र में आम आदमी के कम होते भरोसे को लेकर युवाओं का यह सम्मेलन एक नए संदेश के लिए आयोजित किया जा रहा है। समाज में हर किसी की मदद व कई सामाजिक सरोकारों के कार्यों को बिना सरकार के सहयोग से करने वाले आशीष शर्मा हमीरपुर सदर में अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आशीष शर्मा जहां एक ओर वरिष्ठ नागरिकों के भरोसे का प्रतीक बने हैं वहीं दूसरी ओर युवाओं में आशा की एक नई किरण लेकर उभरे हैं। आशीष शर्मा से जब पूछा गया कि हमीरपुर में उनके द्वारा करवाए जा रहे सामाजिक कार्यों, सम्मेलनों व अब युवा सम्मेलन का मकसद कहीं सियासत तो नहीं है, तो आशीष शर्मा ने कहा कि न तो वह किसी सियासी पृष्ठभूमि के परिवार से संबंध रखते हैं, न ही सियासत कभी उनका मकसद रहा है। उन्होंने अपना करियर एक साधारण कारोबारी के रूप में शुरू किया था। जहां वह अपना काम बेहद शानदार तरीके से कर रहे थे। लेकिन सिस्टम व सरकार की तानाशाही से जब उन्होंने रोज आम नागरिक को आहत, पीडि़त व प्रताडि़त होते हुए देखा तो उन्हें लगा कि सिस्टम की इस लचर कारगुजारी पर अंकुश लगाने के लिए किसी को तो आगे आना होगा। बस इसी एक कारण से उन्होंने समाज सेवा का संकल्प लिया, जिस पर वह लगातार काम करते आ रहे हैं। जब आशीष शर्मा से यह पूछा गया कि कहीं उनका राजनीति में आने का इरादा तो नहीं है तो उन्होंने कहा कि समाज सेवा से जुडऩे के बाद अब उनका जीवन सार्वजनिक हो गया है। अब आज होने वाले युवा सम्मेलन में जिस तरह का आदेश उन्हें युवाओं की फौज व वरिष्ठ नागरिकों की समझ देगी वह उसे मानने के लिए बाध्य व वचनबद्ध होंगे। आशीष शर्मा से जब यह जानना चाहा कि क्या वह चुनाव लड़ेंगे और अगर लड़ेंगे तो किस पार्टी से लड़ेंगे। इस पर आशीष शर्मा ने बताया कि अब उनका जीवन सार्वजनिक होने के बाद उनकी पार्टी व पार्टी आलाकमान हमीरपुर सदर की आवाम है। जिस तरह का जो भी आदेश लोग करेंगे वह उसे मानने के लिए वचनबद्ध होंगे।
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आशीष शर्मा ने बताया कि अगर शिक्षा, चिकित्सा, पानी, सड़कें जैसी मौलिक हकों वाली सुविधाएं संविधान के मुताबिक न होकर सियासी सिफारिशों पर ही नागरिकों को मिलनी हैं तो ऐसी सियासत व सिस्टम को एक दम बदलने की जरूरत है, यह उनकी निजी राय है लेकिन उन्हें यकीन है कि उनकी इस राय से हर आम नागरिक इतफाक रखता है। पीने का पानी नेता की सिफारिश पर नहीं बल्कि प्यासे की जरूरत के मुताबिक मिलना जरूरी है। इसी तरह बेहतर पढ़ाई व बेहतर दवाई नेता की सिफारिश पर नहीं जरूरत के मुताबिक नागरिकों को मिलनी जरूरी है। लेकिन देखा यह जा रहा है कि कुछ वर्षों से सियासत की स्वार्थी नीतियों ने सिस्टम को पंगु बनाकर रख दिया है व नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं के लिए नेताओं की सिफारिश का मोहताज बनाकर रख दिया है। यानि अब मूलभूत अधिकार लोकतंत्र व संविधान के मुताबिक नहीं मिलते हैं बल्कि नेताओं की कठपुतली बनकर रह गए हैं, ऐसे में इस सिस्टम को बदलने की समय की मांग ही नहीं जरूरत भी है।