बिलासपुर घुमारवीं- 04 अक्टूबर,अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा कल से शुरू l तीन साल बाद एक बार फिर से कुल्लू का ढालपुर मैदान अपने पुराने रंग में नजर आ रहा है। दरअसल कोरोना संक्रमण के कारण पिछले दो साल कार्यक्रम का आयोजन सूक्ष्म स्तर पर किया गया था, सप्ताह भर चलना वाला ये उत्सव इसलिए अनूठा है क्योंकि जब देश के बाकी हिस्सों में दशहरा उत्सव समाप्त हो जाता है तब इसका आयोजन किया जाता है।
इस अद्भुत पर्व में स्वर्ग से धरती पर देवी-देवता आते हैं और लोगों की उत्सव को लेकर अटूट आस्था जुड़ी हुई है।
देवी देवताओं के महाकुंभ के नाम से मशहूर दशहरे का आगाज बीज पूजा और देवी हिडिंबा, बिजली महादेव और माता भेखली का इशारा मिलने के बाद ही होता है।
यह पहला मौका होगा जब देश के प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में शिरकत करेंगे।
उत्सव से पहले देवी हिडिंबा देती हैं विशेष संकेत देवी देवताओं के महाकुंभ के नाम से मशहूर दशहरे का आगाज बीज पूजा और देवी हिडिंबा, बिजली महादेव और माता भेखली का इशारा मिलने के बाद ही होता है।
उसके बाद भगवान रघुनाथ जी की पालकी निकाली जाती है।
कुल्लू दशहरा का वास्तविक नाम विजयादशमी से जोड़ा जाता है।
भगवान रघुनाथ का देवभूमि कुल्लू से विशेष नाता आयोध्या से कुल्लू लाए गए भगवान रघुनाथ जी का देवभूमि कुल्लू से भी अटूट व गहरा नाता है। कुल्लू दशहरा का इतिहास साढ़े तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है। दशहरा के आयोजन के पीछे भी एक रोचक घटना का वर्णन मिलता है।
इसका आयोजन 17वीं सदी में कुल्लू के राजा जगत सिंह के शासनकाल में आरंभ हुआ. राजा जगत सिंह ने वर्ष 1637 से 1662 ईसवी तक शासन किया। उस समय कुल्लू रियासत की राजधानी नग्गर हुआ करती थी।