Homeधार्मिकमहाकुंभ मेला: जानिये कब शुरू होगा कुम्भ का मेला , पूरी जानकारी।

महाकुंभ मेला: जानिये कब शुरू होगा कुम्भ का मेला , पूरी जानकारी।

महाकुंभ मेला: जानिये कब शुरू होगा कुम्भ का मेला , पूरी जानकारी।

महाकुंभ मेला, जिसे हिंदू धर्म के सबसे बड़े और सबसे पवित्र धार्मिक उत्सवों में से एक माना जाता है, भारत के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर हर 12 वर्ष में आयोजित किया जाता है। यह मेला विशेष रूप से उन चार स्थानों पर आयोजित होता है जहाँ पवित्र नदियाँ—गंगा, यमुना, सरस्वती, और भगीरथी—मिलती हैं। इन स्थलों में प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार, और उज्जैन शामिल हैं। यह मेला एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव होता है जिसमें लाखों-लाख लोग भाग लेते हैं, स्नान करते हैं, और श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा-अर्चना करते हैं।

महाकुंभ मेला का ऐतिहासिक महत्व

महाकुंभ मेला का सबसे पुराना उल्लेख हमें प्रयाग महात्म्य में मिलता है, जो कि प्रथम सहस्राब्दी ईसा पूर्व में लिखा गया था। मत्स्य पुराण के अध्याय 103-112 में भी प्रयाग के संगम क्षेत्र की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिसमें तीर्थयात्रा की परंपरा और गंगा, यमुना, और सरस्वती नदियों के संगम में स्नान की पवित्रता पर जोर दिया गया है।

हालांकि, महाकुंभ मेला का सटीक आरंभ काल पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि यह प्राचीन काल से आयोजित होता आ रहा है। इस बारे में कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्य मिलते हैं:

महाकुंभ का ऐतिहासिक उल्लेख

  1. 7वीं शताब्दी में ह्वेन त्सांग का उल्लेख
    सबसे पुराना ऐतिहासिक उल्लेख चीनी बौद्ध यात्री ह्वेन त्सांग (Xuanzang) का है, जिन्होंने 644 ईस्वी में राजा हर्ष के शासनकाल में प्रयाग का दौरा किया। उन्होंने अपनी यात्रा विवरण में प्रयाग को एक पवित्र हिंदू नगर के रूप में वर्णित किया, जिसमें सैकड़ों मंदिर और बौद्ध संस्थान थे। उन्होंने संगम पर हिंदू स्नान अनुष्ठानों का उल्लेख किया है, जिसमें यह बताया गया कि लोग कुंभ मेले में स्नान करने आते थे ताकि उनकी आत्मा शुद्ध हो सके।
  2. ऋग्वेद परिशिष्ट और पाली ग्रंथों में उल्लेख
    महाकुंभ मेले का आयोजन ऋग्वेद के परिशिष्ट में भी सुझाया गया था। इसके अलावा, बौद्ध धर्म के पाली ग्रंथों जैसे मज्झिम निकाय में भी महाकुंभ का उल्लेख मिलता है, जो यह दर्शाता है कि इस मेले की परंपरा काफी प्राचीन है।
  3. महाभारत में प्रयाग का महत्व
    महाभारत में भी प्रयाग (जिसे संगम के नाम से भी जाना जाता है) के महत्व का उल्लेख मिलता है, जहां माघ मास में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। महाभारत में इस स्नान को कुंभ तीर्थ के रूप में महत्व दिया गया है, जो जीवन के आदर्श जैसे सत्य, दान, आत्म-नियंत्रण, और धैर्य के पालन का एक साधन माना गया है।

महाकुंभ मेला: एक सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव

महाकुंभ मेला न केवल एक धार्मिक अवसर है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। इसमें लाखों लोग विभिन्न हिस्सों से आते हैं और एक साथ मिलकर विशेष रूप से माघ मास में गंगा, यमुना, और सरस्वती संगम में स्नान करते हैं, जिससे उनका जीवन पवित्र होता है।

हर 12 साल में आयोजित होने वाले इस मेले का आयोजन ग्रहों की स्थिति के आधार पर तय होता है। इसलिए यह मेला कभी प्रयागराज, कभी हरिद्वार, कभी उज्जैन और कभी नासिक में आयोजित होता है। यह उत्सव भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा है, जो न केवल भारत, बल्कि दुनियाभर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

महाकुंभ मेला 2025

आगामी महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से शुरू होगा। यह मेला 45 दिनों तक चलेगा, और इस बार लगभग 40 करोड़ लोगों के आने की संभावना है। यह मेला ना केवल भारतीयों के लिए बल्कि दुनिया भर के तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक अनुभव होगा।

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