Mahakumbh 2025, समुद्र मंथन से जुड़ी पौराणिक कथा और उसका महत्व
कुम्भ मेला हिंदू धर्म का एक प्रमुख आयोजन है, जिसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तो इस मंथन से अमृत निकला, जिसे पीने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। यह युद्ध 12 दिनों तक चला, जो पृथ्वी पर 12 वर्षों के बराबर था, इसीलिए कुम्भ मेला हर 12 वर्षों में आयोजित होता है।
कुम्भ का अर्थ है ‘कलश’। समुद्र मंथन से 14 दुर्लभ रत्न प्रकट हुए थे, जिनमें से एक रत्न था अमृत से भरा कलश। इस अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच धरती पर 12 वर्षों तक युद्ध चला। इस युद्ध के दौरान, अमृत कलश से कुछ बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इन बूंदों के गिरने से इन स्थानों पर कुम्भ मेला आयोजित होने का महत्व है।
इन बूंदों का गिरना इन प्रमुख नदियों में हुआ था: गंगा (प्रयाग और हरिद्वार), शिप्रा (उज्जैन) और गोदावरी (नासिक)। चूंकि युद्ध 12 वर्षों तक चला, इसलिए कुम्भ मेला हर 12 वर्षों में इन चार स्थानों पर आयोजित होता है। वहीं, हरिद्वार और प्रयाग में हर 6 वर्षों में अर्धकुम्भ मेला होता है।
कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक मेला भी होता है, जो लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यह मेलों का आयोजन इसलिए होता है ताकि श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास को और भी सुदृढ़ कर सकें।
समुद्र मंथन की यह पौराणिक कथा इस बात का प्रतीक है कि सच्चाई और धर्म हमेशा विजय प्राप्त करते हैं, चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न आएं। कुम्भ मेला धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है और इसका आयोजन विश्वभर से आने वाले श्रद्धालुओं को एकत्रित करता है।