सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने के लिए अनुमति जरूरी : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार से अनुमति की आवश्यकता पर जोर दिया है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-197(1) के तहत सरकारी अधिकारियों और न्यायाधीशों पर मुकदमा चलाने से पहले संबंधित सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है। यह प्रावधान ईमानदार और वफादार अधिकारियों की सुरक्षा के लिए है।
मामले का विवरण:
यह मामला विभू प्रसाद आचार्य, जो आंध्र प्रदेश सरकार के कर्मचारी हैं, के खिलाफ था। उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आरोपी बनाया था।
- तेलंगाना उच्च न्यायालय का आदेश: 2019 में तेलंगाना उच्च न्यायालय ने आचार्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि सरकार की अनुमति के बिना इस मामले पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
- सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: इसके खिलाफ ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। हालांकि, न्यायमूर्ति अभय ओक और न्यायमूर्ति एक. जे. मसीह की पीठ ने ईडी की अपील को खारिज करते हुए तेलंगाना उच्च न्यायालय का निर्णय बरकरार रखा।
- आरोप: ईडी ने आचार्य पर आरोप लगाया कि उन्होंने सरकारी भूखंडों का आवंटन करते समय पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए प्लॉट का मूल्यांकन कम किया और अपने पद का दुरुपयोग किया।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले सरकार की अनुमति लेना कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है और यह प्रावधान सरकारी कर्मचारियों को उनके कार्यों में सुरक्षा और संरक्षण देने के लिए है, ताकि कोई भी संगठित दबाव या गलत आरोप उनके खिलाफ न लगाए जा सकें।
इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ कि मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर मामलों में भी सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उचित प्रक्रिया का पालन जरूरी है।