आगजनी की घटनाओं को कम करने के लिए स्वयं से जागरूकता ही है सशक्त हथियार : दिवान राजा
आनी हिमाचल में सर्दियों में आगजनी की घटनाओं में तीव्र गति से इज़ाफ़ा होता है। बात चाहे जंगल में आग लगने की हो या फिर मकानों और खेत खलिहानों में अक्सर आगजनी की बड़ी और दुखद खबरें देखने और सुनने को मिलती है । प्रदेश मीडिया प्रभारी व जिलाध्यक्ष दिवान राजा ने कहा कि एक और जहां जंगल की आग से अमूल्य वन्य संपदा समेत वन्य जीव जंतुओं का जीवन नष्ट होता है वहीं, घरों में आग लगने से भी जीवन भर की जमा पूंजी पलभर में बर्बाद हो जाती है। ऐसी घटनाएं अक्सर बड़े पैमाने पर हिमाचल के कोने कोने में आए दिन घटित होती है। बीते दिनों कुल्लू बंजार के जीभी तांदी , टील में बड़ी आगजनी की घटनाएं पेश आई जिसमें सैकड़ों लोगों के आशियाने उजड़ गए और जीवन भर की जमा पूंजी भी आग में स्वाह हो गई।
आनी में भी हर पंचायत में आए दिन ऐसी दुखदाई घटनाएं पेश आती हैं, बात चाहे जंगल में आग की हो या मकानों में ये घटनाएं थमती नज़र नहीं आ रही है। जिसमें बीते दिनों रूमाली में कुछ परिवारों का सब कुछ लूट गया। ऐसे में ये घटनाएं दुखदाई होने के साथ साथ हम सभी के लिए सबक भी हैं। आग की चपेट में न जाने कितने मकान, अनमोल जिंदगियां, जीव जंतु, पशुधन समेत फसल और अमूल्य संपदा नष्ट हो रही है। ऐसी घटनाएं जो या तो प्राकृतिक है, तकनीकों कारणों से या मानव की कुछ स्वयं की लापरवाही से । वजह जो भी हो लेकिन ऐसे में हम सभी का क्या दायित्व है ? एक तो गांव में पुराने घरों में सूखे घास के भंडारण की जो परम्परा है उससे बचाव जरूरी है। ऐसे में देखने में आया है कि ऐसा रखा गया सुखा घास जब आग की छोटी सी चिंगारी पकड़ लेता है तो पूरा गांव आग की चपेट में आ जाता है जिसका ताजा उदाहरण बंजार के तांदी में हुए भीषण अग्निकांड और टील में देखने को मिला । पुरानी परम्परा के चलते यह तर्क था कि पहाड़ों में बहुत ज्यादा बर्फ़ पड़ती है तो पशुधन को घास दूर से लाने में दिक्कत होती थी इस वजह से नज़दीक ही ऐसे मकानों में घास को रखा जाता था। क्योंकि अब इस प्रथा को जारी रखने का कोई औचित्य नजर नहीं आता, अब न तो उतनी बर्फ पड़ती है और न ही हमारी गौशालाएं इतनी दूर है।
वहीं, विशेष तौर पर इस सीजन में खेतों में पेड़ पौधों की कांट छांट तौलिए और गड़े बनाने का काम भी युद्ध स्तर पर होता है। ऐसे में खेतों में कांट छांट और अन्य कामों के बाद अवशेष को जलाने की भी परम्परा है। इससे कई बार कब आग सुलग कर बड़ी तबाही कर दें, कोई अंदाजा नहीं। इतना ही नहीं, खेतों से उठता धुंआ चौतरफा देखा जाता है और बागवानों को सलाह भी दी जाती है कि ऐसा न करें, पेड़ पौधों के इन अवशेषों को नमी के लिए या खाद बगैरह बनाने के लिए इस्तेमाल करें आखिर समझे कौन । किसको परवाह कि धुएं से सांस लेने की दिक्कत, बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को तकलीफ होती होगी। इसी के चलते भारतीय वन अधिनियम के तहत जंगल के साथ वाले ज़मीन में 100 मीटर के दायरे के अन्दर आग लगाने, खुले में ज्वलनशील पदार्थ फैंकने या निजी घासनी में आग लगाने पर विभाग द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है और विभिन्न धाराओं के तहत जुर्माने या कानूनी कार्रवाई का भी प्रावधान है। लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और हैं। ऐसे में आखिर कब तक हम सभी ऐसे ही धुँ धुँ कर हमारे जंगल, आशियाने, वन्य संपदा को जलती देखते रहेंगे। अभी भी वक्त है। आगजनी की इन घटनाओं को आगरा कम करना है तो स्वयं से जागरूक होकर अन्य को भी जागरुक करने की आवश्यकता है ताकि हमारा जीवन, पर्यावरण इसमें विचरण करने वन्य प्राणी, वन्य संपदा सभी महफूज रह सके।
तो ऐसे में हम सभी के इस विषय पर जागरूक होने की आवश्यकता है। न ही घास के नजदीक अंगीठी और आग जलाएं। बिजली के शॉर्ट सर्किट की संभावना है तो तुरंत सुव्यवस्थित करवाएं। गांव में पानी के जो टैंक बने हैं, उनमें पानी हो ये हर एक व्यक्ति सुनिश्चित करें कि कैसे इसका भंडारण करना है ताकि आसानी से पानी उपलब्ध हो सकें। ग्राम सभा के माध्यम से भी पंचायत प्रतिनिधि और वन विभाग, अग्निशमन विभाग इस बारे जागरूक करने और बचाव के तरीके बताकर घटनाओं पर लगाम लगा सकते हैं और जंगल को अनेक माध्यम से नष्ट करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके ही हमारा कल बेहतर बना रह सकता है। तो आइए हम सभी ये प्रण लेते हैं कि हम ग्रामीण स्तर पर इन सभी घटनाओं को रोकने में लोगों को जागरूक करने का काम करेंगे।