किराएदारों के हक में Supreme Court का बड़ा फैसला, किराये की टेंशन हुई खत्म
अगर आप किसी अन्य शहर या स्थान पर किराए पर रहते हैं, तो आपको अपने अधिकार और जिम्मेदारियों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने किराया न देने पर मकान मालिक द्वारा की गई कानूनी कार्रवाई पर अहम निर्णय लिया है, जिसे जानना आपके लिए जरूरी है।
किसी मकान मालिक ने अपने किराएदार से किराया न मिलने पर सुप्रीम कोर्ट में मामला दर्ज किया था। कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि कोई किराएदार मजबूरी के कारण किराया नहीं दे पाता, तो यह किसी अपराध के श्रेणी में नहीं आता। इस मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) की कोई धारा लागू नहीं होती और न ही इसके तहत किसी तरह की सजा का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किराया न देने पर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ IPC के तहत मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता। यह एक सिविल मामला है, और अगर किराएदार जानबूझकर किराया नहीं दे रहा है, तो मकान मालिक उसे कानूनी तौर पर सिविल रेमेडी के तहत हटा सकता है।
यह मामला “नीतू सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य” पर आधारित था, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मकान मालिक के खिलाफ की गई शिकायत में दिए गए तथ्यों के आधार पर यह साबित नहीं होता कि किराया न देना अपराध है। कोर्ट ने इस मामले में दायर FIR को खारिज कर दिया और कहा कि इसके लिए कोई कानूनी कार्रवाई IPC के तहत नहीं हो सकती।
हालांकि, कोर्ट ने मकान मालिक को यह अधिकार दिया कि यदि किराएदार जानबूझकर किराया नहीं चुका रहा है और बकाया रकम अधिक है, तो वह सिविल कोर्ट में मामले की सुनवाई करा सकता है और किराया वसूलने के लिए कानूनी कदम उठा सकता है।
अगर आप मकान मालिक हैं और आपके किराएदार ने जानबूझकर किराया नहीं दिया है, तो आप उसे कानूनी तरीके से वसूलने के लिए सिविल रेमेडी का सहारा ले सकते हैं। इसके लिए आपको कोर्ट में मामला दायर करना होगा। यदि कोई किराएदार बकाया राशि को चुकता नहीं करता है, तो आप उसे कानूनी तौर पर संपत्ति से बाहर करने के लिए भी कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।
इस निर्णय से यह स्पष्ट है कि किराया न देना एक सिविल मामला है और इसे IPC के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। हालांकि, अगर किराएदार जानबूझकर भुगतान नहीं कर रहा है, तो मकान मालिक सिविल अदालत में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है और किराया वसूलने के लिए कानूनी कार्रवाई कर सकता है। यह फैसला मकान मालिकों और किराएदारों दोनों के लिए अहम है, क्योंकि यह दोनों पक्षों के अधिकारों को सुनिश्चित करता है और किसी भी गलतफहमी को दूर करता है।