हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में समरहिल क्षेत्र में भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटना में तबाह हुए शिव बावड़ी मंदिर का इतिहास करीब डेढ़ से 200 साल पुराना है। बताया जाता है कि इसका निर्माण गोरखा शासकों के समय में हुआ था। बावड़ी शिव के लिए समर्पित थी। मंदिर तपस्या और अराधना के लिए उपयुक्त स्थान था, इसमें नियमित रूप से साधु आते रहते थे। बाद में मंदिर परिसर में बनी बावड़ी हिंदुओं के लिए तीर्थ स्थल बन गया। मंदिर में वर्तमान में मंदिर में पूजा अर्चना का कार्य गढ़वाल के तीन पुजारी करते हैं। मंदिर की एक अलग कमेटी भी बनी है। मंदिर की बावड़ी को लेकर मान्यता है कि यहां निसंतान दंपती पूजा अर्चना करे तो संतान प्राप्ति होती है। बावड़ी के पानी में भक्त स्नान करने आते हैं। इससे चर्म रोग भी दूर हो जाते हैं। लोगों के साथ शिव मंदिर को नीचे लाने तक बहा ले गया मलबा
शिव बावड़ी मंदिर भूस्खलन के चलते मलबे में दफन हो गया। सावन का सोमवार होने के कारण सुबह 6:30 बजे से ही पूजा अर्चना के लिए मंदिर में लोगों की आवाजाही शुरू हो गई थी। मंदिर में पुजारी के अलावा अन्य लोग भी मौजूद थे। स्थानीय लोगों के अनुसार आसपड़ोस के कई बच्चे भी माथा टेकने मंदिर गए थे।
सावन के सोमवार में हर बार यहां सुबह से ही लोगों की आवाजाही शुरू हो जाती है। अंदेशा जताया कि जिस समय यह हादसा हुआ, उस समय भी पुजारी समेत 25 से 30 लोग मंदिर में मौजूद थे। भूस्खलन और पेड़ ढहने से मंदिर समेत आसपास का पूरा इलाका मलबे में दब गया है। मलबा मंदिर से होता हुआ निचली ओर नाले तक जा पहुंचा। कई लोग मलबे के साथ नीचे नाले तक पहुंच गए थे। नाले से भी कुछ शव बरामद किए गए हैं