उत्तरकाशी सुरंग हादसा: टनल में फंसे लोगों के लिए जिंदगी-मौत के बीच ‘नींद’, सुरक्षा कर्मियों की भी बढ़ी मुश्किल

उत्तरकाशी में टनल हादसे में फंसे 40 लोगों को सकुशल निकालने के लिए रेस्क्यू टीम का अभियान आज मंगलवार को तीसरे दिन भी जारी रहा। चिंता की बात है कि पिछले तीन दिनों से लगातार काम करने से रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे सुरक्षा कर्मियों के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो गई है।

हिन्दुस्तान टाइम्स के अमित बठला की रिपोर्ट के अनुसार, बचाव कार्यों में जुटे सुरक्षाकर्मियों में से अधिकांश थकान और नींद की कमी से से परेशान हैं। हालांकि अधिकारियों ने दावा किया कि उन्हें अपनी ड्यूटी जारी रखने के लिए पर्याप्त आराम सुनिश्चित करने के साथ ही शिफ्ट-वार ड्यूटी लगाई जा रही है ताकि रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे कर्मियों को भी आराम मिल सके।

15वीं बटालियन के एनडीआरएफ कर्मी सचिन चौधरी थके हुए लग रहे थे और एक कप चाय के लिए सुरंग स्थल के पास एक चाय की दुकान में चले गए। उन्होंने कहा, ”रविवार शाम को जब हम यहां तैनात थे तब से हम अपने अस्थायी तंबुओं में केवल कुछ घंटों की नींद ही ले पाए हैं ”। उन्होंने कहा कि चुनौतियों के बावजूद वह अब तक किए गए प्रयासों से संतुष्ट हैं।

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), और पुलिस, स्वास्थ्य और राजस्व विभाग के लगभग 160 कर्मी बचाव और राहत अभियान में शामिल हैं। अधिकारियों ने कहा कि अर्थ-मूविंग, ड्रिलिंग मशीनों, पोकलेन मशीनों और जेसीबी से मलबा हटाने का प्रयास किया जा रहा है।

भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के सतेंद्र कुमार ने कहा कि वे 24 घंटे की ड्यूटी पर साइट पर तैनात हैं। “हमारी 24 घंटे की ड्यूटी है। हमारी टीम हमारे कैंप मातली (उत्तरकाशी) से आती है और हर 24 घंटे में यहां तैनात दूसरी टीम को बदल देती है। यात्रा में बहुत समय लगता है… हमें मुश्किल से नींद आती है और शारीरिक तनाव महसूस होता है,”।

उन्होंने कहा कि हम रात के समय भी सुरंग के बाहर खड़े रहते हैं। एसडीआरएफ के जवान बिपिन कुमार कहते हैं कि हालांकि उनकी ड्यूटी 12 घंटे की होती है, लेकिन उन्हें सतर्क रहना पड़ता है और रात के दौरान सुरंग के चारों ओर चक्कर लगाना पड़ता है। कहा कि हम यहां शिफ्ट-वाइज तैनात हैं। यह 12 घंटे तक चलता है, लेकिन, हमें रात के समय सुरंग के चक्कर लगाने पड़ते हैं। ऐसे में हम ठीक से सो नहीं पाते है।

उत्तरकाशी जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी (डीडीएमओ) देवेंद्र पटवाल ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि बचाव में शामिल कर्मियों को अपने कर्तव्यों को जारी रखने के लिए पर्याप्त आराम मिले। यह अलग-अलग एजेंसी में अलग-अलग होता है। बचाव अभियान मुख्य रूप से मशीनरी आधारित है, हालांकि सहायता के लिए कर्मियों को तैनात किया गया है।