अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक दर्जा देने पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। इस फैसले में 7 जजों की बेंच ने 4-3 के अनुपात में निर्णय दिया, जिसमें सीजेआई (Chief Justice of India), जस्टिस खन्ना, जस्टिस पारदीवाला, और जस्टिस मनोज मिश्रा ने एकमत होकर पक्ष में निर्णय दिया, जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता, और जस्टिस एससी शर्मा का फैसला अलग रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बनाए रखने का फैसला लिया, लेकिन कोर्ट ने यह भी साफ किया कि इस मामले में एक नई बेंच बनाई जाएगी, जो इस बारे में गाइडलाइंस तैयार करेगी और यह तय करेगी कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं। नई बेंच AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के संबंध में गाइडलाइंस तैयार करेगी और इसके आधार पर फाइनल फैसला लिया जाएगा।
क्यों अहम है यह फैसला?
इस फैसले के मायने इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि 1967 के अज़ीज़ बाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि कोई संस्थान केवल इसलिए अल्पसंख्यक दर्जा नहीं प्राप्त कर सकता क्योंकि उसे कानून द्वारा बनाया गया था। AMU के मामले में यह तर्क दिया गया था कि चूंकि इसे कानून द्वारा अस्तित्व में लाया गया था, इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिल सकता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पुराने फैसले को खारिज कर दिया है और यह कहा कि निगमन (incorporation) और स्थापना (establishment) अलग-अलग प्रक्रिया हैं, और संस्थान के प्रशासन को भी एक अहम तत्व माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्णय लिया?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
- अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकार अनुच्छेद 30 के तहत सीमित नहीं होते।
- अल्पसंख्यक दर्जे को प्राप्त करने के लिए यह जांच की जाएगी कि संस्थान की स्थापना किसने की, उस संस्थान में किस समुदाय का योगदान था, और वह संस्थान किस उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
- कोर्ट ने यह माना कि निगमन और स्थापना में फर्क है, और AMU की स्थापना का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय की शिक्षा को बढ़ावा देना था।
अगला कदम: क्या होगा अब?
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को एक 3 सदस्यीय नियमित बेंच को सौंपा है, जो इस बारे में फाइनल निर्णय लेगी। यह बेंच AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर और गाइडलाइंस को तैयार करेगी। कोर्ट ने यह भी तय किया कि अल्पसंख्यक संस्थानों के प्रशासन, स्थापना और उनके उद्देश्यों को समझने के लिए एक विस्तृत मापदंड तैयार किया जाएगा। इस फैसले के बाद, यह भी तय किया जाएगा कि AMU वास्तव में अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है या नहीं।
वकील शादान फराशात की राय
वकील शादान फराशात ने इस फैसले को AMU के लिए राहत भरा करार दिया है। उनके अनुसार, 1967 के फैसले को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट किया कि कानूनी निगमण और संस्थान की स्थापना अलग चीजें हैं। अब AMU के लिए यह रास्ता खुल गया है कि वह अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सके, क्योंकि इसकी स्थापना का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय की शिक्षा को बढ़ावा देना था, और इसके प्रशासन में भी इसी समुदाय का प्रभाव रहा है।
फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह फैसला न केवल AMU के लिए, बल्कि देश भर के अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए भी अहम है, क्योंकि यह उनके अधिकारों और उनके द्वारा किए जाने वाले दावों को लेकर एक नया मार्गदर्शन प्रदान करेगा। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि अल्पसंख्यक दर्जा केवल कानूनी ढांचे पर आधारित नहीं होता, बल्कि संस्थान की स्थापना, उसके उद्देश्य और प्रशासन को भी ध्यान में रखा जाएगा।