बैजनाथ शिव मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक पूज्यनीय स्थल है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश में पालमपुर का प्रसिद्ध धार्मिक और पर्यटन स्थल है।

बिलासपुर घुमारवीं _11 जनवरी 2024, 1204 ई. में दो क्षेत्रीय व्यापारियों ‘अहुक’ और ‘मन्युक’ द्वारा स्थापित बैजनाथ मंदिर पालमपुर का एक प्रमुख आकर्षण है और यह शहर से 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। हिन्दू देवता शिव को समर्पित इस मंदिर की स्थापना के बाद से लगातार इसका निर्माण हो रहा है। यह प्रसिद्ध शिव मंदिर पालमपुर के ‘चामुंडा देवी मंदिर’ से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
पौराणिक कथा :
बैजनाथ मंदिर की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है-
त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर शिव के निमित्त तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुर्नस्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना।
रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में ‘गौकर्ण’ क्षेत्र (बैजनाथ) में पहुँचने पर रावण को लघुशंका का अनुभव हुआ। उसने ‘बैजु’ नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह ‘चन्द्रभाल’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह ‘बैजनाथ’ के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है।
पांडव नहीं बना पाए पूरा मंदिर:
द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य ‘आहुक’ एवं ‘मनुक’ नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई. में पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान ‘शिवधाम’ के नाम से उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है।
धार्मिक आस्था का केंद्र:
बैजनाथ शिव मंदिर दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर साल भर पूरे भारत से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है। प्रार्थना हर दिन सुबह और शाम में की जाती है। इसके अलावा विशेष अवसरों और उत्सवों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, वैशाख संक्रांति, श्रावण सोमवार आदि पर्व भारी उत्साह और भव्यता के साथ मनाऐ जाते हैं। श्रावण मास में पड़ने वाले हर सोमवार को मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है। श्रावण के सभी सोमवार को मेले के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर हर वर्ष पांच दिवसीय राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया जाता है।
दशहरा उत्सव :
दशहरा का उत्सव, जो परंपरागत रूप से रावण का पुतला जलाने के लिए मनाया जाता है, लेकिन यहाँ बैजनाथ में इसे रावण द्वारा की गई भगवान शिव की तपस्या ओर भक्ति करने के लिए सम्मान के रूप में मनाया जाता है। बैजनाथ शहर के बारे में एक और दिलचस्प बात यह है कि यहाँ सुनार की दुकान नहीं है।
स्नान का महत्त्व :
मंदिर के साथ बहने वाली विनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु स्नान करने के उपरांत शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उस पर बिल्व पत्र, फूल, भांग, धतुरा इत्यादि अर्पित कर भोले नाथ को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुन्य कमाते हैं।