बिलासपुर: आस्था का प्रतीक माना गया है उत्तरी भारत के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध।

बिलासपुर घुमारवीं: 26 मई 2022 उत्तरी भारत के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध जिला मुख्यालय हमीरपुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बाबा बालक नाथ के दर्शनों के लिए हिमाचल प्रदेश के साथ ही पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरी भारत के लगभग हर राज्य से श्रद्धालु हर साल दर्शन करने पहुंचते हैं।

बाबा बालक नाथ को भगवान कार्तिकेय का अवतार माना जाता है।
मंदिर में पहाड़ी के बीच एक प्राकृतिक गुफा है।
ऐसी मान्यता है कि यही स्थान बाबाजी का आवास स्थान था। मंदिर में बाबा की एक मूर्ति स्थित है।
भक्तगण बाबा की वेदी में ‘रोट’ चढ़ाते हैं।
रोट’ को आटे और चीनी/गुड़ को घी में मिलाकर बनाया जाता है। यहां पर बाबाजी को बकरा भी चढ़ाया जाता है। जो कि उनके प्रेम का प्रतीक है।
बाबा बालक नाथ के बारे में एक और कथा प्रचलित है।कहा जाता है कि शाहतलाई में रत्नो माई नाम की एक महिला रहती थी जिनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने बाबा बालक नाथ को अपना धर्म का पुत्र बनाया था।
बाबा बालक नाथ ने 12 साल माता रत्नो माई की गायें चराई। एक दिन जब गायें लोगों के खेतों में चरने के लिए घुस गई तो माता रत्नो के पास लोग शिकायत लेकर आए जिससे माता रत्नो ने गुस्से में आकर बाबा बालक नाथ बुरा भला कहा जिसके बाबा ने तानों से दुखी होकर 12 साल की लस्सी और रोटियां लौटा दीं।

जब ये कहानी आस पास के लोगों को पता चली तो ये रिद्धी सिद्धी पूरी जगह फैल गई।
जब गुरू गोरख नाथ को इसका पता चला तो वो काफी खुश हुए और बाबा बालक नाथ के पास पहुंच गए और उन्हें अपना चेला बनने के लिए कहा, लेकिन बाबा ने मना कर दिया, गोरख नाथ ने क्रोधित होकर उन्हें जबरदस्ती अपना चेला बनाने की कोशिश की। बाबा ने उड़ारी मारी और धौलगिरी पर्वत पर पहुंच गए, जहां बाबा की पवित्र गुफा है।

मंदिर के मुख्य द्वार के साथ ही बाबा का अखंड धूणा है जो सबको आकर्षित करता है। धूणे के पास ही बाबा बालक नाथ का चिमटा मौजूद है। बताया जाता है कि बाबा बालक नाथ की गुफा में दियोट (दीपक) जलता था। जिसकी रोशनी दूर दूर तक जाती थी।जिसके बाद यहां का नाम दियोटसिद्ध पड़ा।
बाबा की गुफा में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध है, लेकिन उनके दर्शन के लिए गुफा के बिलकुल सामने एक ऊंचा चबूतरा बनाया गया है।

जहां से महिलाएं उनके दूर से दर्शन कर सकती हैं। मंदिर से करीब छह किमी आगे एक स्थान ‘शाहतलाई’ स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इसी जगह बाबाजी ‘ध्यानयोग’ किया करते थे। चैत्र नवरात्रों के दौरान यहां पर एक महीना मेले का आयोजन होता है। इस दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं‌, बाबा बालकनाथ हिंदू और सिख धर्म के अनुयायियों के पूजनीय देवता हैं।