भागवत कथा सुनने से होती मोक्ष की प्राप्ति !- #कथा वाचक- महंत त्रिलोक गोस्वामी जी !!

जिला हमीरपुर के ग्राम पंचायत टिब्बी,मझोग में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी ! कथा वाचक महंत त्रिलोक गोस्वामी जी ने द्वापरकाल में कालजयी राजा जरासंध से भगवान कृष्ण के कई चक्र होने वाले युद्धों का सविस्तार वर्णन करते हुए कहा कि युद्ध धर्म, न्याय धर्म के बीच के साथ सिर्फ जीतना होता है ! उसके लिए धैर्य और पराक्रम के साथ लक्ष्‌य प्राप्ति तक संघर्ष करते रहने का संदेश छिपा हुआ है ! इसी प्रकार रुकमणी विवाह का सविस्तार चित्रण वर्णन किया ! सामाजिक परिवेश और संदेश में कृष्ण सुदामा के प्रेम और सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कथा वाचक महंत त्रिलोक गोस्वामी जी ने बताया कि मित्रता में छोटा बड़ा ऊंच-नीच जैसा कोई भेदभाव नहीं होता है ! जिसके प्रतीक भगवान श्री कृष्ण हैं जो स्वयं सुदामा को स्वीकार कर व्यक्त किया है ! महंत त्रिलोक गोस्वामी जी ने कहा कि सुदामा ने भी अपने भाग्य को स्वीकारा और उसे भोगा ! बस अपने प्रभु का स्मरण वे हमेशा करते रहे कि इस कष्ट को सहने की शक्ति दे ! भगवान कृष्ण तो सब जानते थे वे अपने मित्र को जानते थे और जब कष्ट का समय बीता और सुदामा उनके द्वार पर पहुंचे तो दौड़े-दौड़े आए अपने मित्र को गले लगा लिया ! कथा वाचक महंत त्रिलोक गोस्वामी जी कहा कि जिस तरह परीक्षित ने भी सिर्फ कथा ही सुनी थी और मोक्ष प्राप्त किया ! भागवत की कथा को यदि कोई मन से श्रवण ही कर लें तो उसे मोक्ष प्राप्त हो सकता है ! उन्होंने लोगों से भक्ति मार्ग से जुड़ने और सत्कर्म करने को कहा ! साथ में उन्होंने कहा कि हवन-यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है ! व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है ! दुर्गुणों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं ! यज्ञ से देवता प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करते हैं ! उन्होंने बताया कि भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है ! श्रीमद भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं ! इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं ! विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है ! उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है ! पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन ! जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं ! हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है ! मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है ! जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है ! भगवान का लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है ! पूजन के बाद दोपहर को भंडारा लगाकर प्रसाद बांटा गया जो देर शाम तक चलता रहा ! इस दौरान मन्दिर के पुजारी महंत गुरु शिवगिरी जी महाराज, महंत गुरु संतोष गिरी जी महाराज जी,राजेश शर्मा, वीर सिंह, सिंटू ठाकुर,विन्नु,रमेश,पंडित लक्की शर्मा, पंडित प्रवीन शर्मा,गिरीधारी लाल,सुभाष चन्द रांगडा,पंडित स्वरूप शर्मा,अनूप,ईश्वरदास शर्मा,चन्द्रशेखर,स्वरूप शर्मा, बिट्टू,अशोक राणा,सत्या राणा,ममता,आशा ठाकुर आदि अन्य स्थानीय लोग मौजूद थे !!