शर्मनाक – कड़ाके की ठंड में बसों में रात गुजार रह रहे HRTC चालक-परिचालक।

प्रदेश की लाइफ लाइन कही जाने वाली एचआरटीसी बसों के चालक-परिचालक कड़कड़ाती ठंड में बसों के भीतर सोने को मजबूर हैं। आम जनता के आवागमन को सुगम बनाने वाले एचआरटीसी प्रबन्धन अपने चालकों एवं परिचालकों के रात के ठहराव के लिए बोर्डिंग व रेस्ट रूम की सुविधा उपलब्ध नहीं कर पाया है। आलम यह है कि कई रूटों पर एचआरटीसी के चालकों-परिचालकों को बस में ही बिस्तर लगाना पड़ रहा है। शिमला, चंबा, किन्नौर व कुल्लू जिलों के ग्रामीण रूटों पर चलने वाली एचआरटीसी बसों में यह समस्या आम हो गई है।

दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में एचआरटीसी बसों का आखिरी रूट देर शाम रहता है और सुबह इसी रूट से एचआरटीसी बस को यात्रियों को लेकर लौटना होता है। इस दौरान रात्रि ठहराव का स्थायी इंतज़ाम न होने के कारण मजबूरन चालक-परिचालक रात भर अपनी बसों में सोते हैं।
एचआरटीसी की संयुक्त समन्वय कर्मचारी समिति के अध्यक्ष समर चौहान कहते हैं कि चालक-परिचालक अपनी जान जोखिम में डालकर दुर्गम क्षेत्रों में पहुंचते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि वे खुद आराम नहीं कर सकते हैं। उन्हें बसों में ही बिस्तर लगाकर सोना पड़ रहा है। रात्रि ठहराव को लेकर कई बार प्रबंधन से मांग की जा चुकी है, यह समस्या लंबे समय से बनी हुई है। समिति ने इसे बार-बार उठाया है।

समिति के सचिव खेमेन्द्र गुप्ता का कहना है कि एचआरटीसी के चालकों-परिचालकों पर यात्रियों को सुरक्षित रूप से अपने घरों तक पहुंचाने का जिम्मा रहता है औऱ वे अपनी ड्यूटी को पूरी जिम्मेदारी से निभा रहे हैं। लेकिन कई रूटों पर चालकों-परिचालकों को अपनी बसों में सोना पड़ता है क्योंकि उनके लिए बोर्डिंग की व्यवस्था नहीं है।

उनका कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में चालक व परिचालकों को इस तरह की परेशानी ज्यादा होती है। इस बीच एचआरटीसी के उप मंडल प्रबंधक (यातायात) देवा सेन नेगी के अनुसार एचआरटीसी के चालकों-परिचालकों को कोई असुविधा न हो, इसका ध्यान रखा जाता है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण रूटों पर इस तरह की समस्या को देखते हुए एचआरटीसी सम्बंधित ग्राम पंचायतों के साथ एक समझौता करती है कि वो चालकों और परिचालकों के रात्रि ठहराव और खान-पान के लिए व्यवस्था करेगी। उनका कहना है कि अगर कहीं ऐसा नहीं हो रहा है तो ये इंतजाम करने की जिम्मेदारी एचआरटीसी के क्षेत्रीय प्रबंधक की है।