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केजीएमयू के डॉक्टरों ने पित्ताशय के कैंसर की पहचान के लिए नई विधि खोजी

केजीएमयू के पैथोलॉजी विभाग की संकाय सदस्य प्रोफेसर प्रीति अग्रवाल ने कहा कि पित्ताशय के कैंसर का निदान करने की वर्तमान विधि कार्बोहाइड्रेट एंटीजन 19-9 (सीए 19-9) नामक पदार्थ का उपयोग करती है।

उन्‍होंने कहा, “हालांकि, इसकी सटीकता से समझौता किया गया है, क्योंकि यह अग्नाशय के कैंसर से भी जुड़ा है। यह संबंध दो प्रकार के कैंसर के बीच समानता के कारण गलत निदान का कारण बन सकता है।”

इस मुद्दे को हल करने के लिए प्रोफेसर प्रीति और उनकी टीम ने सीए 19-9 के साथ एक और मार्कर, कार्बोहाइड्रेट एंटीजन 242 (सीए242) को शामिल किया। इन दोनों मार्करों के संयोजन से लगभग 100 प्रतिशत सटीकता प्राप्त हुई, जो एकल मार्कर दृष्टिकोण की 82 प्रतिशत सटीकता से अधिक थी।

अध्ययन के निष्कर्ष और कार्यप्रणाली को दिसंबर में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च इन मेडिकल साइंसेज में कार्सिनोमा पित्ताशय के सीरोलॉजिकल वर्कअप में कार्बोहाइड्रेट एंटीजन 19-9 के अलावा कार्बोहाइड्रेट एंटीजन 242 का समावेश : एक केस श्रृंखला विश्‍लेषण शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया है।

प्रोफेसर प्रीति ने कहा कि पित्ताशय के कैंसर का शीघ्र पता लगाना, जिसकी मृत्युदर लगभग 70 प्रतिशत है, महत्वपूर्ण है।

अध्ययन में 50-55 आयु वर्ग के 83 लोगों का रक्त विश्‍लेषण शामिल था, जिनमें स्वस्थ स्वयंसेवक, क्रोनिक कोलेसिस्टिटिस के मामले और पित्ताशय के कैंसर के रोगी शामिल थे।

परिणामों से पता चला कि पित्ताशय के कैंसर के रोगियों में सीए 19-9 और सीए242 दोनों का स्तर काफी अधिक था, जिसमें ट्यूमर के आकार और सीए242 के स्तर के बीच एक मजबूत संबंध था।

यह स्वीकार करते हुए कि यह शोध अभी भी प्रारंभिक चरण में है, प्रोफेसर अग्रवाल ने इस दृष्टिकोण को नियमित नैदानिक ​​अभ्यास में शामिल करने से पहले अतिरिक्त सत्यापन और बड़े अध्ययन की जरूरत पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि सफल होने पर डुअल-मार्कर दृष्टिकोण प्रारंभिक पहचान में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, गलत निदान को कम कर सकता है और रोगियों के लिए बेहतर परिणाम ला सकता है।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

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