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सूक्ष्म लघु उद्योगों की व्यापारिक स्वतन्त्रता, मौलिक नागरिक अधिकार में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं।

Iiफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल (फेम) ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर करते हुये मांग की है कि देश के एम एस एम ई में रजिस्टर्ड सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों को धारा 43 बी एच के तहत खरीद भुगतान के लिये बाध्य न किया जाए।ऐसा करने से उद्योग जगत की अपनी आर्थिक भुगतान की समय पालना स्थिति को लेकर नया संकट पैदा हो जाएगा।

भारत सरकार ने 1 अप्रैल 2024 से 45 दिनों के अंदर व्यापारिक खरीद के भुगतान की समय सीमा न्याश्चित कर दी है।ऐसा न होने की स्थिति में उंस भुगतान को उंस उद्योगिक फर्म की आय मान लिया जाएगा।

 

फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल के रष्ट्रीय प्रवक्ता राजेश्वर पैन्यूली ने नई दिल्ली में पत्रकारों को बताया कि फेम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयेंद्र तन्ना और राष्ट्रीय महामंत्री आर के गौर द्वारा बुलाई गई फेम की राष्ट्रीय ऑनलाइन बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया।कि इस प्रावधान से देश के छोटे और लघु उद्योगों की स्वतंत्रता उनके व्यापार के परस्पर सम्बन्ध प्रभावित होंगे। और सबसे बड़ी बात यह पूरी तरह अव्यवहारिक और अतार्किक है कि किसी भुगतान को 45 दिन बाद उस उद्योग की आय मान लिया जाएगा।फेम ने उद्योगों के हित मे यह कदम उठाया है।

 

उन्होंने आगे कहा कि देश के व्यापारी सरकार की अपनी जी एस टी पोर्टल की 2017-18 और 2018-19 कि कमियों की मार आज झेल रहा है।जबकि सरकार ने अपने जी एस टी पोर्टल पर पांच सालों में सैंकड़ों परिवर्तन किये।

 

उन्होंने आगे कहा कि फेम सरकार को पूरा राजस्व देने की मांग देश के उद्योगपतियों और व्यापारियों से हमेशा करता रहा है।और इसके लिये फेम ने एक सरल जी एस टी प्रणाली एकल बिंदु जी एस टी के रूप में सुझाव के तौर पर सरकार के समक्ष रखा था।लेकिन जब तक सरकार उद्योग और व्यापार के साथ सहयोगात्मक रवैया नहीं अपनाएगी तो भारत का व्यापार जगत विकास के स्थान पर इसी प्रकार अनावश्यक प्रावधानों में उलझा रहेगा।

 

इसलिये सरकार में 43 बी एच पर कोई सुनवाई न होते देखकर फेडरेशन ऑफ आल इंडिया व्यापार मंडल (फेम) को सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष जाना पड़ा है।

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